हाई बीपी से स्ट्रोक का खतरा कैसे बढ़ता है?

हाई बीपी से स्ट्रोक का खतरा कैसे बढ़ता है?

हाई बीपी से स्ट्रोक का खतरा कैसे बढ़ता है?

उच्च रक्तचाप आपके मस्तिष्क पर कितना बड़ा खतरा बन सकता है? जानिए कैसे हाई बीपी स्ट्रोक का कारण बनता है, क्या लक्षण होते हैं, और इसे रोकने के लिए जरूरी कदम।

सूचना: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है और किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कल्पना कीजिए कि आप बिल्कुल सामान्य दिन बिता रहे हैं—आपका ब्लड प्रेशर थोड़ा ज्यादा है, लेकिन आपको कोई विशेष लक्षण महसूस नहीं हो रहे। आप सोचते हैं कि कोई बात नहीं, ऐसा तो कभी-कभी होता है। लेकिन यही लापरवाही कब एक गंभीर परिणाम का कारण बन जाती है, इसका अंदाज़ा शायद तब होता है जब स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थिति सामने आ खड़ी होती है। हाई ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन को अक्सर ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है, और यह नाम यूं ही नहीं पड़ा। इसकी विशेषता यही है कि यह वर्षों तक शरीर को अंदर ही अंदर नुकसान पहुंचाता रहता है, बिना किसी विशेष चेतावनी के।

जब भी ब्लड प्रेशर सामान्य से अधिक होता है, तो हमारे रक्त वाहिनियों (blood vessels) पर अधिक दबाव बनता है। ये रक्त वाहिनियाँ, विशेष रूप से मस्तिष्क की ओर जाने वाली नाजुक नसें, इस लगातार दबाव को सहन नहीं कर पातीं और समय के साथ क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। हाई बीपी का यह लगातार बना रहने वाला तनाव धीरे-धीरे इन नसों की दीवारों को कमजोर कर देता है, जिससे वे या तो फट सकती हैं (hemorrhagic stroke) या उनमें रुकावट आ सकती है (ischemic stroke)। दोनों ही स्थितियाँ मस्तिष्क को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न करती हैं, जिससे न्यूरॉन्स मरने लगते हैं और व्यक्ति को लकवा, बोलने में परेशानी, शरीर के किसी भाग का सुन्न पड़ना, या चेतना की हानि हो सकती है।

स्ट्रोक और हाई बीपी के बीच का संबंध पूरी तरह से वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य कार्डियोलॉजी संस्थाएं मानती हैं कि स्ट्रोक के सबसे प्रमुख कारणों में से एक अनियंत्रित हाइपरटेंशन है। कई शोध बताते हैं कि जिन लोगों का सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर लगातार 140 mmHg या उससे ऊपर होता है, उनमें स्ट्रोक का खतरा 4 गुना तक बढ़ जाता है। खासतौर से यदि यह स्थिति वर्षों तक बनी रहती है और व्यक्ति को इसकी गंभीरता का अहसास तक नहीं होता, तब तो खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है।

यह केवल एक शारीरिक संबंध नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी कई व्यवहारिक और जीवनशैली संबंधित बातें भी हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो हाई बीपी से जूझ रहा है और साथ में धूम्रपान करता है, शराब पीता है, व्यायाम नहीं करता, और अत्यधिक तनाव में रहता है—तो ऐसे व्यक्ति का स्ट्रोक का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। उच्च रक्तदाब मस्तिष्क की छोटी रक्त वाहिनियों को धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त करता है, और जब कोई ट्रिगर—जैसे अचानक डर, तनाव, या फिजिकल एक्सर्शन—आता है, तो स्ट्रोक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

हाइपरटेंशन से जुड़ा यह जोखिम केवल वृद्ध लोगों तक सीमित नहीं है। आजकल युवा वर्ग भी तेजी से इसके चपेट में आ रहा है, मुख्यतः अनियमित जीवनशैली, फास्ट फूड, डिजिटल स्ट्रेस, और नींद की कमी के कारण। और यही कारण है कि हम बार-बार कहते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर की नियमित मॉनिटरिंग जरूरी है, क्योंकि इसके शुरूआती लक्षण अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं। सिरदर्द, चक्कर आना, थकावट, या धुंधली दृष्टि जैसी बातें आम समझी जाती हैं, लेकिन ये संकेत हो सकते हैं कि मस्तिष्क पर दबाव बढ़ रहा है।

स्ट्रोक का खतरा तभी नहीं होता जब बीपी असाधारण रूप से उच्च हो, बल्कि यह खतरा तब भी बना रहता है जब बीपी थोड़े-से उच्च स्तर पर वर्षों तक बना रहे। यह मस्तिष्क की छोटी रक्त वाहिनियों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाता है, जिसे ‘साइलेंट ब्रेन इंफार्क्ट्स’ कहते हैं—जो शुरुआती तौर पर कोई लक्षण नहीं देते, लेकिन बाद में डिमेन्शिया और याददाश्त की कमी जैसी समस्याओं में बदल सकते हैं।

इसलिए हाई बीपी के मरीजों को ना केवल अपनी दवाएं नियमित लेनी चाहिए, बल्कि जीवनशैली में ऐसे बदलाव भी लाने चाहिए जो इस जोखिम को कम करें। कम नमक वाला आहार, पर्याप्त नींद, रोज़ाना हल्का व्यायाम, योग या ध्यान, कैफीन और शराब का सीमित सेवन, और तनाव प्रबंधन—ये सभी उपाय ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं। डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा लेना और समय-समय पर BP चेक करवाना सबसे आवश्यक है।

हमें यह समझने की आवश्यकता है कि स्ट्रोक एक आकस्मिक घटना नहीं होती, यह वर्षों तक चलने वाली लापरवाही का नतीजा हो सकती है। यदि हम समय रहते हाई बीपी को नियंत्रित करना शुरू करें, तो स्ट्रोक जैसे जानलेवा परिणाम को रोका जा सकता है। यह केवल स्वास्थ्य का प्रश्न नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता और दीर्घायु का प्रश्न है।

 

FAQs with Answers:

  1. हाई बीपी से स्ट्रोक कैसे होता है?
    हाई बीपी से धमनियों पर अधिक दबाव पड़ता है, जिससे वे क्षतिग्रस्त होती हैं और ब्रेन में ब्लड क्लॉट या रक्तस्राव हो सकता है।
  2. क्या सभी हाई बीपी मरीजों को स्ट्रोक होता है?
    नहीं, लेकिन अनियंत्रित हाई बीपी से स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
  3. स्ट्रोक के क्या लक्षण होते हैं?
    अचानक बोलने में कठिनाई, चेहरा टेढ़ा होना, एक बाजू या टांग में कमजोरी, और भ्रम की स्थिति आदि।
  4. क्या स्ट्रोक तुरंत होता है या समय लगता है?
    स्ट्रोक अक्सर अचानक होता है और यह एक इमरजेंसी है।
  5. हाई बीपी को कंट्रोल करने से स्ट्रोक टाला जा सकता है क्या?
    हाँ, सही दवा, आहार, और जीवनशैली से स्ट्रोक का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  6. कौन से बीपी रेंज स्ट्रोक के लिए खतरनाक माने जाते हैं?
    140/90 mmHg से ऊपर की रीडिंग लगातार बनी रहे तो खतरा बढ़ जाता है।
  7. क्या युवा लोगों को भी स्ट्रोक हो सकता है?
    हाँ, विशेषकर यदि हाई बीपी लंबे समय तक अनियंत्रित रहे।
  8. स्ट्रोक के बाद रिकवरी संभव है क्या?
    अगर जल्दी इलाज हो जाए, तो काफी हद तक रिकवरी संभव है।
  9. स्ट्रोक से पहले कोई चेतावनी संकेत मिलते हैं?
    कुछ मामलों में “मिनी स्ट्रोक” यानी TIA के रूप में चेतावनी मिलती है।
  10. क्या हाई बीपी वाले लोगों को नियमित जांच करानी चाहिए?
    हाँ, स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के लिए यह जरूरी है।
  11. क्या तनाव स्ट्रोक का कारण बन सकता है?
    हाँ, मानसिक तनाव बीपी बढ़ा सकता है और अप्रत्यक्ष रूप से स्ट्रोक में योगदान कर सकता है।
  12. क्या घरेलू उपाय बीपी कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं?
    हाँ, जैसे नमक कम खाना, योग, और पर्याप्त नींद।
  13. स्ट्रोक के बाद फिजियोथेरेपी जरूरी है क्या?
    हाँ, यह मांसपेशियों की ताकत और संतुलन बहाल करने में मदद करती है।
  14. बीपी की दवा बंद कर देने से खतरा बढ़ता है?
    बिना डॉक्टर की सलाह के दवा बंद करना खतरनाक हो सकता है।
  15. क्या स्ट्रोक के बाद दूसरा स्ट्रोक भी हो सकता है?
    हाँ, इसलिए बचाव के उपाय और नियमित जांच जरूरी हैं।

 

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