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टाइप 2 डायबिटीज के छुपे हुए खतरे: जोखिम कारकों को समय रहते पहचानें और रोकथाम करें

टाइप 2 डायबिटीज के छुपे हुए खतरे: जोखिम कारकों को समय रहते पहचानें और रोकथाम करें

टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कई जीवनशैली और आनुवंशिक कारणों से बढ़ता है। जानिए कौन-कौन से प्रमुख जोखिम कारक हैं और कैसे आप समय रहते सावधानी बरतकर इसे रोक सकते हैं।

सूचना: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है और किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

कल्पना कीजिए, आप अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हैं—ऑफिस की मीटिंग्स, बच्चों की देखभाल, थोड़ा बहुत सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करना—सबकुछ सामान्य चल रहा है। लेकिन अचानक एक दिन, डॉक्टर की एक रिपोर्ट आपके सामने आती है और आप सुनते हैं: “आपको टाइप 2 डायबिटीज है।” शुरुआत में आप थोड़े हैरान होते हैं, क्योंकि न तो आपको ज़्यादा प्यास लगती है, न ही बार-बार पेशाब जाने की समस्या है, और न ही कोई बड़ी थकावट महसूस होती है। लेकिन यही टाइप 2 डायबिटीज की सबसे चुपचाप फैलने वाली खासियत है—यह अक्सर बिना शोर किए ही आपके शरीर को धीरे-धीरे प्रभावित करने लगती है।

टाइप 2 डायबिटीज सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि एक जीवनशैली से जुड़ा संकट है, जो एक लंबी प्रक्रिया के बाद उभरकर सामने आता है। इसके पीछे कई जोखिम कारक होते हैं, जो वर्षों तक शरीर में एक सूक्ष्म परिवर्तन की तरह पलते रहते हैं। इनमें से कुछ कारक हमारे नियंत्रण में होते हैं, जबकि कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें हम बदल नहीं सकते, लेकिन समझकर उनसे निपटना ज़रूरी होता है।

सबसे प्रमुख जोखिम कारकों में से एक है मोटापा, खासकर पेट के आसपास जमा चर्बी। आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में फिजिकल एक्टिविटी की कमी और अनहेल्दी फूड का सेवन इतना बढ़ चुका है कि शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेंस पनपने लगता है। यानी आपका शरीर इंसुलिन तो बना रहा है, लेकिन उसे सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा। यह स्थिति धीरे-धीरे ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ाने लगती है, और फिर एक दिन वही डायग्नोसिस होता है जिससे हम डरते हैं—टाइप 2 डायबिटीज।

परिवार का इतिहास भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर आपके माता-पिता, दादा-दादी या भाई-बहन में किसी को डायबिटीज है, तो आपकी जोखिम काफी बढ़ जाती है। इसका मतलब यह नहीं कि आप निश्चित रूप से डायबिटीज के शिकार होंगे, लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि आपको अपने स्वास्थ्य पर सामान्य से अधिक ध्यान देना होगा। यही समझदारी आपको समय रहते स्वस्थ बनाए रख सकती है।

उम्र एक और अहम कारक है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील होती जाती हैं। यही कारण है कि 45 वर्ष की आयु के बाद डायबिटीज की जांच नियमित रूप से कराना एक समझदारी भरा कदम माना जाता है। हालांकि, आजकल यह समस्या युवाओं और बच्चों तक में देखने को मिल रही है, खासकर शहरी जीवनशैली और मानसिक तनाव के चलते।

तनाव की बात करें तो यह भी एक अदृश्य लेकिन गंभीर कारण है। क्रॉनिक स्ट्रेस यानी लंबे समय तक बना रहने वाला मानसिक दबाव शरीर में कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन को बढ़ा देता है, जो इंसुलिन के असर को कमजोर कर सकता है। ऑफिस की डेडलाइंस, घरेलू झगड़े, आर्थिक परेशानियाँ—ये सभी अनदेखे जोखिम बन सकते हैं।

शारीरिक गतिविधि की कमी यानी “बैठे रहने की आदत” भी डायबिटीज को बुलावा देती है। दिन भर कुर्सी पर बैठकर काम करना, फिर घर आकर मोबाइल या टीवी के सामने बैठे रहना, मेटाबॉलिज़्म को धीमा कर देता है। इससे न सिर्फ वजन बढ़ता है, बल्कि ब्लड शुगर को नियंत्रित करने की क्षमता भी कम हो जाती है।

खानपान की आदतें भी बहुत कुछ तय करती हैं। उच्च कैलोरी वाले प्रोसेस्ड फूड, मीठे पेय, बेकरी आइटम्स और जंक फूड्स न केवल वजन बढ़ाते हैं, बल्कि शरीर की इंसुलिन प्रोसेसिंग को भी प्रभावित करते हैं। इसके विपरीत, फाइबर से भरपूर फल, सब्जियां, साबुत अनाज, और हेल्दी फैट्स वाले आहार टाइप 2 डायबिटीज की रोकथाम में मदद कर सकते हैं।

नींद की कमी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में नींद को अक्सर ‘लक्ज़री’ मान लिया गया है, लेकिन 6 से 8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद न केवल मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है, बल्कि ब्लड शुगर को बैलेंस करने में भी सहायक होती है। नींद की कमी से शरीर में हार्मोनल असंतुलन होता है, जो डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है।

धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन भी डायबिटीज के लिए जिम्मेदार कारक हैं। ये न केवल पैंक्रियाज पर असर डालते हैं बल्कि शरीर के मेटाबोलिज्म को भी प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, कई बार हम ऐसे दवाइयों का लंबे समय तक सेवन करते हैं जो ब्लड शुगर बढ़ा सकती हैं, जैसे स्टेरॉयड या कुछ मानसिक रोगों की दवाइयाँ। इन दवाओं के असर को समझकर डॉक्टर की सलाह से ही इन्हें लंबे समय तक लेना चाहिए।

हॉर्मोनल असंतुलन, जैसे कि पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) भी महिलाओं में डायबिटीज का कारण बन सकता है। इसी तरह, कुछ जातीय समूहों में भी यह रोग ज्यादा देखा गया है, जैसे भारतीय, अफ्रीकी, लातीनी और मूल अमेरिकी मूल के लोगों में।

इन तमाम जोखिम कारकों को जानने और समझने के बाद सवाल उठता है—अब क्या करें? इसका जवाब इतना जटिल नहीं जितना लगता है। छोटी-छोटी जीवनशैली में की गई समझदारी भरी आदतें जैसे रोज़ाना 30 मिनट टहलना, संतुलित भोजन, पर्याप्त नींद, तनाव को मैनेज करने की कला और नियमित हेल्थ चेकअप हमें इस रोग से दूर रख सकते हैं।

वास्तव में, टाइप 2 डायबिटीज से बचाव का सबसे कारगर तरीका है—जानकारी और जागरूकता। जब हम यह समझ लेते हैं कि हमारे रोजमर्रा के निर्णय हमारे भविष्य की सेहत तय करते हैं, तो हम स्वाभाविक रूप से बेहतर विकल्प चुनने लगते हैं।

यह एक सतत यात्रा है, जिसमें गिरना और संभलना दोनों संभव हैं। लेकिन यदि हम समय रहते जोखिमों को पहचान लें, तो हम टाइप 2 डायबिटीज को न केवल टाल सकते हैं, बल्कि एक स्वस्थ और सक्रिय जीवन जीने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ा सकते हैं।

 

FAQs with Answer:

  1. टाइप 2 डायबिटीज का सबसे सामान्य जोखिम कारक क्या है?
    मोटापा टाइप 2 डायबिटीज का सबसे बड़ा जोखिम कारक है, खासकर पेट के आसपास फैट जमा होना।
  2. क्या आनुवंशिक कारण से डायबिटीज हो सकती है?
    हां, यदि परिवार में किसी को टाइप 2 डायबिटीज है तो आपको इसका खतरा अधिक हो सकता है।
  3. क्या तनाव भी जोखिम कारकों में शामिल है?
    जी हां, लगातार तनाव हार्मोनल बदलाव लाता है जो ब्लड शुगर को प्रभावित कर सकता है।
  4. फिजिकल इनएक्टिविटी से डायबिटीज का खतरा क्यों बढ़ता है?
    शारीरिक निष्क्रियता से शरीर इंसुलिन का उपयोग ठीक से नहीं कर पाता, जिससे शुगर लेवल बढ़ता है।
  5. क्या उम्र बढ़ने के साथ खतरा बढ़ता है?
    हां, 45 वर्ष के बाद डायबिटीज का जोखिम काफी बढ़ जाता है।
  6. क्या टाइप 2 डायबिटीज केवल अधिक वजन वाले लोगों को होती है?
    नहीं, दुबले-पतले लोगों में भी यह बीमारी हो सकती है, खासकर अगर अन्य जोखिम कारक हों।
  7. क्या धूम्रपान और शराब सेवन जोखिम बढ़ाते हैं?
    हां, दोनों ही आदतें ब्लड शुगर और इंसुलिन के कार्य को प्रभावित करती हैं।
  8. नींद की कमी का क्या संबंध है?
    नींद की खराब गुणवत्ता इंसुलिन रेसिस्टेंस और वजन बढ़ने से जुड़ी होती है।
  9. क्या महिलाएं प्रेगनेंसी के दौरान अधिक जोखिम में होती हैं?
    जी हां, गर्भावस्था के दौरान होने वाला जेस्टेशनल डायबिटीज आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज में बदल सकता है।
  10. क्या बच्चों में भी टाइप 2 डायबिटीज हो सकती है?
    आजकल बच्चों में मोटापा बढ़ने से यह बीमारी कम उम्र में भी देखी जा रही है।
  11. क्या ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल का डायबिटीज से संबंध है?
    हां, उच्च रक्तचाप और खराब लिपिड प्रोफाइल डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाते हैं।
  12. क्या खराब खानपान एक कारण हो सकता है?
    जी हां, अधिक चीनी, फैट और प्रोसेस्ड फूड से डायबिटीज का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
  13. क्या वजन कम करने से जोखिम घट सकता है?
    हां, 5–10% वजन कम करने से डायबिटीज का खतरा काफी घट जाता है।
  14. क्या नियमित जांच से खतरा कम किया जा सकता है?
    हां, नियमित ब्लड शुगर जांच और जीवनशैली में बदलाव से बीमारी की शुरुआत को रोका जा सकता है।
  15. क्या योग और ध्यान का लाभ होता है?
    हां, योग और मेडिटेशन तनाव को कम कर ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

 

क्या काम का तनाव आपको बीमार बना रहा है? जानिए क्यों और कैसे बचें इसका असर

क्या काम का तनाव आपको बीमार बना रहा है? जानिए क्यों और कैसे बचें इसका असर

काम का तनाव आपके शरीर को धीमे ज़हर की तरह नुकसान पहुँचा सकता है। जानिए लक्षण, कारण और तनाव से बचने के असरदार उपाय।

सूचना: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है और किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

आज की तेज़-तर्रार जीवनशैली में हम अक्सर काम पर दिए गए तनाव को सामान्य ले लेते हैं — फिर चाहे मौके दबाव, समय की कमी, अथक मीटिंगें, या लगातार ईमेल की घंटियां हों। शुरुआत में यह सिर्फ एक सिरदर्द या नींद की कमी का कारण लगता है, लेकिन जैसे-जैसे तनाव बढ़ता है, यह हमारे शरीर और मन पर अंदर तक असर करने लगता है। पाचन खराब होता है, थकावट हो जाती है, नींद नहीं आती, और अचानक ही बीपी या हृदय की समस्या का खतरा खड़ा हो जाता है। इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि काम का तनाव वास्तव में क्यों और कैसे बीमारियाँ पैदा करता है, और क्या क्या छोटे लेकिन असरदार उपाय अपनाए जा सकते हैं।

सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि तनाव केवल मानसिक नहीं होता — यह हार्मोन के रूप में शरीर में पहुंचकर हमारी शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है। कोर्टिसोल और एड्रेनालिन रिलीज़ किए जाने लगते हैं जो हमारे हृदय की धड़कन तेज़ करते हैं, पाचन प्रक्रिया धीमी कर देते हैं, और नींद के चक्र को बाधित कर देते हैं। जैसे ही यह स्थिति बनी रहती है, हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है, परिणामस्वरूप हम छोटी बीमारियाँ भी आसानी से झेलने लगते हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि जिस व्यक्ति के शरीर में तनाव हार्मोन लंबे समय तक सक्रिय रहते हैं, उस व्यक्ति में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, पेट की समस्याएँ और किडनी की कमजोरी जैसी जटिलताएँ जल्दी दिखने लगती हैं। हमारे आसपास कई लोग यह अनुभव करते हैं कि जब लंबे समय तक काम के दबाव में रहते हैं, तो उनका वजन बढ़ जाता है या अचानक घट जाता है, भूख गड़बड़ाती है, बार-बार सिरदर्द या गले में सूजन जैसी शिकायतें होने लगती हैं।

बहुत से लोग हल्के तनाव को “मैं तो इसी के बिना काम नहीं कर सकता” कहकर सही ठहरा लेते हैं, लेकिन वास्तव में यह एक आदत बन जाती है। इस आदत के चलते हम दिनभर कॉफी या एनर्जी ड्रिंक्स से ऊर्जा पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह केवल कुछ घंटों के लिए काम करता है। जब शाम होती है बस शरीर का भार महसूस होता है और नींद ठीक नहीं आती।

यहां एक वास्तविक उदाहरण है: एक दूसरी लग्जरी कार कंपनी में एक टीम लीडर ने बताया कि शुरुआत में वह हर दिन काम के बाद जिम जाते थे, ध्यान करते थे, लेकिन जैसे पेचिदा प्रोजेक्ट चला और जिम्मेदारियाँ बढ़ीं—उन्होंने सोचा तनाव को अपने जीवनशैली से सामंजस्य बना लें। धीरे-धीरे उनकी नींद खराब हुई, पाचन गड़बड़ हुआ, और एक दिन अचानक BP हाई हो गया। डॉक्टर ने पाया कि कोर्टिसोल स्थायी रूप से हाई था। उन्होंने योग, गहरी साँस और मेडिटेशन अपनाया, सोशल सपोर्ट सिस्टम मजबूत किया और तनाव कम करने के प्रयास किए। कुछ हफ्तों में उनकी शारीरिक स्थिति सुधरने लगी।

इन अनुभवों से स्पष्ट है कि हमें तनाव को जीवन का हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए। सबसे पहले आदत होनी चाहिए—हर काम के बीच छोटे ब्रेक लेना। 5 मिनट चलना, आंखें बंद कर गहरी साँस लेना, ठंडी हवा खींचना जैसे छोटे अंतराल तनाव को भीतर तक नहीं पहुँचने देते। दूसरा आदत होनी चाहिए—नींद और पाचन पर ध्यान देना। रात को हल्का भोजन, बिजली स्क्रीन से दूर रहना, मोबाइल बंद करना, ध्यान या शांति के अभ्यास को आदत में शामिल करना अत्यंत मददगार साबित होता है।

मेडिटेशन, विशेष रूप से दैनिक 5 मिनट का डायफ्रामेटिक ब्रीदिंग अभ्यास, तनाव कम करने में बेहद प्रभावी साबित हुआ है। कई अध्ययन दर्शाते हैं कि अनुलोम-विलोम, ताली मलिश, मनपसंद संगीत सुनना और दिनभर गहरी साँस लेना कोर्टिसोल को लगभग 25% तक कम कर सकता है। किसी तरह की शारीरिक गतिविधि, जैसे सुबह चलना या परिवार के साथ बाहर टहलना, तनाव को मोड में बदल देता है — जिससे पाचन क्रिया मजबूत होती है, नींद बेहतर आती है और ऊर्जा बनी रहती है।

डाइट भी इस लड़ाई का एक हिस्सा है। असंतुलित भोजन तनाव को बढ़ाता है। स्ट्रेस फूड, अधिक कैफीन, शक्कर, और प्रोसेस्ड जंक फूड तनाव हार्मोन को बढ़ाते हैं। योग, गहरी साँस, पर्याप्त पानी की मात्रा, प्रोटीन युक्त आहार, फल, सब्जियाँ, दही आदि को शामिल करके भोजन को संतुलित बनाना चाहिए।

जब तपाईं समय रहते अपने मन और शरीर को शांत करने के लिए कुछ आदतें अपनाते हैं — चाहे वह मेडिटेशन हो, हल्की वॉक हो, हेल्दी खाना हो या नींद पर ध्यान हो — तनाव का प्रभाव कम होने लगता है। आपको पता चलता है कि तनाव केवल “अनुभव” नहीं, बल्कि “संदेश” है कि आपने अपनी ज़रूरतें अनदेखा की हैं। उसे सुनना, समझना और सुधारना ही स्वास्थ्य की आखिरी चाबी हो सकती है।

निष्कर्ष में यह कहना चाहता हूँ कि काम का तनाव हमें कमजोर नहीं कर रहा है, पर अगर आप उसे सुनना पसंद कर लें—स्वस्थ आदतों, सुस्त साँसों, समय पर नींद और मित्र सहयोग से—तो यह जीवन में शक्ति देने वाला साथी बन सकता है, बीमार बनाने के बजाय।

 

FAQs with Answers:

  1. काम का तनाव क्या होता है?
    यह वह मानसिक दबाव है जो कार्यस्थल पर अधिक ज़िम्मेदारियों, समय की कमी या कार्य-जीवन संतुलन के अभाव से होता है।
  2. क्या काम का तनाव शरीर को प्रभावित करता है?
    हां, यह नींद, पाचन, हार्मोनल संतुलन और रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है।
  3. तनाव से कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती हैं?
    उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अपच, माइग्रेन, हृदय रोग, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं।
  4. तनाव से वजन क्यों बढ़ता है?
    तनाव हार्मोन कोर्टिसोल के कारण भूख बढ़ती है और शरीर में फैट स्टोरेज ज्यादा होता है।
  5. क्या काम का तनाव डायबिटीज का कारण बन सकता है?
    हां, क्रॉनिक स्ट्रेस इंसुलिन रेसिस्टेंस को बढ़ाता है जिससे डायबिटीज का खतरा बढ़ता है।
  6. तनाव से नींद क्यों खराब होती है?
    मस्तिष्क सक्रिय रहता है और मेलाटोनिन का स्तर घटता है जिससे अनिद्रा होती है।
  7. क्या योग से काम का तनाव कम होता है?
    हां, योग, ध्यान और प्राणायाम तनाव हार्मोन को कम करते हैं।
  8. मेडिटेशन कितना असरदार है तनाव कम करने में?
    रिसर्च के अनुसार, नियमित मेडिटेशन कोर्टिसोल को 20–25% तक कम कर सकता है।
  9. तनाव के लक्षण क्या होते हैं?
    सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, थकान, नींद की कमी, भूख की गड़बड़ी।
  10. काम के तनाव से डिप्रेशन हो सकता है?
    हां, लंबे समय तक तनाव डिप्रेशन का कारण बन सकता है।
  11. तनाव का असर दिल पर कैसे पड़ता है?
    यह हृदयगति तेज करता है, बीपी बढ़ाता है और हृदय रोग की संभावना बढ़ाता है।
  12. तनाव का शरीर पर तत्काल असर क्या होता है?
    धड़कन तेज, मांसपेशियों में खिंचाव, पसीना आना, बेचैनी।
  13. काम के समय ब्रेक लेना जरूरी क्यों है?
    ब्रेक लेने से मानसिक थकान कम होती है और उत्पादकता बढ़ती है।
  14. तनाव कम करने के घरेलू उपाय कौन से हैं?
    तुलसी की चाय, ध्यान, गहरी साँस, संगीत सुनना, नींद को प्राथमिकता देना।
  15. तनाव से पाचन कैसे प्रभावित होता है?
    कोर्टिसोल पाचन एंजाइम्स को कम करता है जिससे गैस, एसिडिटी, कब्ज हो सकती है।
  16. तनाव और इम्यून सिस्टम का क्या संबंध है?
    तनाव से इम्यूनिटी कमजोर होती है जिससे बार-बार बीमारियाँ होती हैं।
  17. तनाव से महिलाओं में क्या दिक्कतें हो सकती हैं?
    हार्मोनल असंतुलन, अनियमित माहवारी, थायरॉइड समस्याएं।
  18. तनाव से पुरुषों में क्या असर दिखता है?
    गुस्सा, चिड़चिड़ापन, यौन क्षमता में कमी, थकावट।
  19. क्या तनाव से पेट दर्द हो सकता है?
    हां, यह IBS (Irritable Bowel Syndrome) का कारण बन सकता है।
  20. क्या तनाव शरीर की ऊर्जा को घटा देता है?
    हां, शरीर हमेशा “फाइट और फ्लाइट” मोड में रहता है जिससे थकावट बढ़ती है।
  21. क्या ऑफिस की राजनीति भी तनाव का कारण है?
    हां, टॉक्सिक वर्क एनवायरनमेंट मानसिक तनाव बढ़ाता है।
  22. तनाव का असर रिश्तों पर कैसे पड़ता है?
    तनाव के कारण झगड़े, संवादहीनता, और भावनात्मक दूरी बढ़ सकती है।
  23. क्या तनाव का इलाज केवल दवाओं से संभव है?
    नहीं, लाइफस्टाइल बदलाव, थेरेपी और मेडिटेशन अधिक प्रभावी हैं।
  24. क्या तनाव बच्चों पर भी असर डालता है?
    हां, माता-पिता का तनाव बच्चों में डर, असुरक्षा और व्यवहार बदलाव ला सकता है।
  25. तनाव कम करने के लिए क्या खाना चाहिए?
    प्रोटीन युक्त आहार, फल, सब्जियाँ, ओमेगा-3 फैटी एसिड, पर्याप्त पानी।
  26. क्या तनाव शराब और धूम्रपान को बढ़ाता है?
    हां, लोग स्ट्रेस से बचने के लिए इनका सहारा लेते हैं, जो और नुकसान करता है।
  27. क्या स्ट्रेस रिलीफ थेरेपी कारगर है?
    हां, काउंसलिंग, CBT, और रिलैक्सेशन थेरेपी फायदेमंद हैं।
  28. क्या तनाव से काम की परफॉर्मेंस पर असर होता है?
    हां, एकाग्रता घटती है, निर्णय लेने की क्षमता कम होती है।
  29. क्या तनाव से सेक्स ड्राइव घटती है?
    हां, लंबे तनाव से टेस्टोस्टेरोन घटता है और इच्छा कम होती है।
  30. तनाव से बचने के लिए दिनचर्या कैसी होनी चाहिए?
    समय पर सोना, खानपान संतुलित रखना, योग, सोशल सपोर्ट और ब्रेक्स शामिल करना चाहिए।