सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी का अंतर
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सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी का अंतर
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी में क्या अंतर होता है? जानिए ब्लड प्रेशर की इन दो संख्याओं का अर्थ, उनका हमारे हृदय और स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, और क्यों दोनों को समझना बेहद ज़रूरी है।
सूचना: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है और किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ब्लड प्रेशर यानी रक्तचाप का ज़िक्र जब भी होता है, तो दो संख्याएं सामने आती हैं—जैसे 120/80 mmHg। अधिकतर लोग इसे सामान्य बीपी मानकर संतुष्ट हो जाते हैं, लेकिन इन दो संख्याओं के पीछे की कहानी बहुत कुछ कहती है। ये सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि हमारे हृदय और रक्त प्रवाह की क्रिया का प्रतिबिंब हैं। इन दो अंकों को सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी कहा जाता है, और इनके बीच का अंतर न सिर्फ तकनीकी है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।
जब हमारा दिल धड़कता है, तो वह शरीर के विभिन्न हिस्सों में खून को पंप करता है। यह प्रक्रिया तब होती है जब हृदय की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं, जिससे रक्त को नलिकाओं में धकेला जाता है। इसी समय जो दबाव रक्त नलिकाओं की दीवारों पर पड़ता है, उसे सिस्टोलिक बीपी कहा जाता है। यह वह ऊपरी संख्या होती है, जैसे 120/80 mmHg में “120”। सिस्टोलिक दबाव दर्शाता है कि जब दिल पूरी ताकत से काम कर रहा होता है, तब नलिकाओं पर कितना तनाव पड़ता है।
अब जब दिल ने एक बार खून पंप कर दिया, तो वह कुछ समय के लिए आराम की स्थिति में आता है। यह वह समय होता है जब दिल को वापस से खून भरना होता है, ताकि अगली धड़कन के लिए वह तैयार हो सके। इस दौरान जो न्यूनतम दबाव रक्त नलिकाओं में बना रहता है, उसे डायस्टोलिक बीपी कहते हैं। यह 120/80 mmHg में “80” होता है। यानी सिस्टोलिक उस समय का दबाव है जब दिल पंप कर रहा होता है, और डायस्टोलिक उस समय का जब दिल आराम कर रहा होता है।
इन दोनों मापों के बीच का अंतर इस बात का संकेत देता है कि हृदय और रक्त नलिकाएं कितनी लचीलापन और कार्यक्षमता के साथ काम कर रही हैं। यदि सिस्टोलिक बीपी बहुत ज़्यादा है, तो यह दिल की अधिक मेहनत और नलिकाओं की कठोरता का संकेत हो सकता है। वहीं, यदि डायस्टोलिक बीपी अधिक है, तो यह नलिकाओं में लगातार दबाव की स्थिति को दर्शाता है, जो कि कई बार किडनी और ब्रेन के लिए भी हानिकारक हो सकता है।
उम्र के साथ इन दोनों मानों में बदलाव आ सकता है। युवाओं में अक्सर डायस्टोलिक बीपी अधिक देखने को मिलता है, जबकि बुज़ुर्गों में सिस्टोलिक बीपी अधिक होना आम बात है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति की धमनियों की स्थिति कैसी है, उनका लचीलापन कितना है, और दिल कितना प्रभावी ढंग से काम कर रहा है।
अब अगर दोनों में से कोई भी मानक अपने सामान्य दायरे से बाहर हो, तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। उच्च सिस्टोलिक बीपी हृदय रोगों, स्ट्रोक, और एथेरोस्क्लेरोसिस जैसी जटिलताओं की संभावना को बढ़ाता है। वहीं उच्च डायस्टोलिक बीपी से आंखों की रेटिना, किडनी और ब्रेन को स्थायी नुकसान हो सकता है। दोनों ही स्थितियाँ जानलेवा हो सकती हैं, खासकर अगर समय रहते इलाज न हो।
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक के बीच के अंतर को “पल्स प्रेशर” कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि बीपी 140/90 mmHg है, तो पल्स प्रेशर होगा 50 mmHg। यह अंतर जितना ज़्यादा होगा, उतना ही हृदय पर दबाव बढ़ेगा। सामान्य पल्स प्रेशर 40 mmHg के आसपास होना चाहिए। बहुत अधिक या बहुत कम पल्स प्रेशर हृदय रोगों का संकेत हो सकता है।
कई बार मरीजों को यह भ्रम होता है कि सिर्फ सिस्टोलिक बीपी को देखना ज़रूरी है, जबकि डायस्टोलिक को नजरअंदाज किया जा सकता है। यह सोच गलत है। दोनों का अपना महत्त्व है और दोनों मिलकर यह तय करते हैं कि आपका संपूर्ण रक्तचाप संतुलित है या नहीं। एक स्वस्थ बीपी प्रोफाइल के लिए दोनों मानकों को नियंत्रण में रखना ज़रूरी है।
इन दोनों मापों को प्रभावित करने वाले कारकों में तनाव, व्यायाम, नींद, खानपान, धूम्रपान, शराब, मोटापा और आनुवंशिक कारण शामिल हैं। उदाहरण के लिए, तेज़ दौड़ के बाद सिस्टोलिक बीपी बढ़ता है लेकिन डायस्टोलिक स्थिर रह सकता है। इसी तरह तनाव की स्थिति में दोनों बढ़ सकते हैं, लेकिन अगर ये बार-बार ऐसा हो रहा है, तो यह स्थायी हाई बीपी में बदल सकता है।
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी को समझना केवल मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए नहीं, बल्कि हर सामान्य व्यक्ति के लिए ज़रूरी है। यदि आप खुद की बीपी रीडिंग समझ पाएंगे, तो समय रहते जीवनशैली में बदलाव कर सकेंगे या डॉक्टर से परामर्श ले पाएंगे। यह ज्ञान आपको न सिर्फ खुद के लिए, बल्कि अपने परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य की निगरानी में भी सक्षम बनाता है।
अगर आपके बीपी रीडिंग में बार-बार किसी एक संख्या का लगातार बढ़ना दिख रहा है, तो यह सतर्क होने का समय है। केवल एक बार बीपी कम या ज़्यादा आना जरूरी नहीं कि बीमारी हो, लेकिन लगातार या बार-बार ऐसा होना चिंता की बात है। ऐसे में डॉक्टर से मिलकर ECG, किडनी फंक्शन टेस्ट, और अन्य जांचें कराना बुद्धिमानी होगी।
निष्कर्षतः, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी सिर्फ दो आंकड़े नहीं हैं—ये दिल की धड़कन और शरीर के स्वास्थ्य का आईना हैं। दोनों की अपनी भूमिका है, और दोनों के बीच का संतुलन ही एक लंबा, स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करता है। उन्हें समझना, मॉनिटर करना, और नियंत्रित रखना न सिर्फ एक आदत, बल्कि एक जिम्मेदारी है।
FAQs with Answers:
- सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी क्या होता है?
सिस्टोलिक दिल के धड़कते समय का दबाव होता है, और डायस्टोलिक आराम की अवस्था का। - बीपी में ऊपर और नीचे की संख्या क्या दर्शाती है?
ऊपर की संख्या सिस्टोलिक और नीचे की डायस्टोलिक होती है। - सामान्य सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी कितना होता है?
आदर्श रूप से 120/80 mmHg। - क्या दोनों बीपी मानक एक समान महत्त्व रखते हैं?
हाँ, दोनों का संतुलन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। - अगर सिस्टोलिक बीपी ज़्यादा हो और डायस्टोलिक सामान्य हो तो क्या यह खतरनाक है?
हाँ, इसे ‘Isolated Systolic Hypertension’ कहा जाता है और यह जोखिमभरा होता है। - क्या डायस्टोलिक बीपी अधिक होने से स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है?
जी हाँ, विशेषकर युवा व्यक्तियों में। - पल्स प्रेशर क्या होता है?
सिस्टोलिक और डायस्टोलिक के बीच का अंतर, जो हृदय की स्थिति दर्शाता है। - क्या सिर्फ सिस्टोलिक बीपी मापना काफी है?
नहीं, दोनों को मापना और समझना ज़रूरी है। - बीपी मॉनिटर में दोनों रीडिंग कैसे समझें?
उदाहरण: 130/85 में 130 सिस्टोलिक और 85 डायस्टोलिक है। - उम्र के साथ कौन सा बीपी अधिक बढ़ता है?
आमतौर पर सिस्टोलिक बीपी। - क्या व्यायाम सिस्टोलिक और डायस्टोलिक दोनों पर असर डालता है?
हाँ, व्यायाम से दोनों मानक नियंत्रित रह सकते हैं। - क्या दवा दोनों बीपी घटाने में समान रूप से असरदार होती है?
यह दवा के प्रकार पर निर्भर करता है; कुछ सिस्टोलिक पर, कुछ डायस्टोलिक पर अधिक असर करती हैं। - क्या लो सिस्टोलिक बीपी खतरनाक होता है?
हाँ, अगर यह 90 mmHg से कम हो और लक्षण हों। - क्या सिस्टोलिक और डायस्टोलिक बीपी दोनों का अलग-अलग इलाज होता है?
कभी-कभी, विशेषत: अगर कोई एक मानक बहुत अधिक प्रभावित हो। - क्या दोनों में से कोई एक ज्यादा महत्वपूर्ण है?
नहीं, दोनों का संतुलन आवश्यक है। केवल एक का नियंत्रण पर्याप्त नहीं।